पिछले 9 अप्रैल को प्रदेश के 7 लाख कर्मचारियों ने अपनी मांग के समर्थन मंे एक दिन की हड़ताल रखी। यह हड़ताल सौ फीसदी सफल रही। यह हड़ताल इतनी सफल रही कि अनेक मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों को अपना दफ्तर खुद ही अपनी गाड़ी चलाते हुए जाना पड़ा। उस रोज कैबिनेट की बैठक भी होनी थी। उसमें शामिल होने के लिए कुछ मंत्रियों को तो प्राइवेट टैक्सियों की भी सेवा लेनी पड़ी।

कर्मचारियों ने अपनी एकता का अच्छा प्रदर्शन किया। उन्होंने एक संयुक्त कार्रवाई समिति बना रखी है। इसमंे सरकारी कर्मचारियों के 19 संगठन शामिल हैं। सफल एक दिवसीय हड़ताल के बाद मोर्चे के नेताओं ने धमकी दी है कि यदि उनकी 51 सूत्रीय मांगों को नहीं माना गया तो वे अनिश्चितकालीन हड़ताल पर भी जा सकते हैं

सरकारी कर्मचारी चुनावों के दौरान बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। यह देखा गया है कि यदि कर्मचारी संतुष्ट नहीं हैं तो वे सरकारी दलों के उम्मीदवारों की हार का कारण भी बन जाते हैं। 2003 में ऐसा ही हुआ था। उस समय दिग्विजय सिंह की सरकार थी और कर्मचारी उनसे असंतुष्ट थे। उन्होंने सत्तारूढ़ कांग्रेस के खिलाफ जाने का निश्चय किया और कांग्रेस की हार हो गई। गौरतलब है कि उस चुनाव के पहले दिग्विजय सिंह ने कहा था कि उन्हें सरकारी कर्मचारियों के वोट की चिंता नहीं है।

कर्मचारियों की सभी मांगों को स्वीकार करना मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान के लिए आसान नहीं हो पाएगा। यह देखा गया है कि इस तरह के मौके पर विरोधी पार्टी इसका लाभ उठाते हैं। इसलिए बहुत संभावना है कि विपक्षी कांग्रेस इसका फायदा उठाते हुए कर्मचारियों के पक्ष में आ खड़ी होगी।

कर्मचारियों की एक मांग है कि छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के अमल की विसंगतियों को समाप्त किया जाय। एक अन्य मांग अनियमित कर्मचारियों को नियमित करने की है। वे सेवानिवृति की उम्र में एकरूपता भी चाहते हैं। जिन दरों पर और जिस समय से केन्द्र सरकार अपने कर्मचारियों को महंगाई भत्ता देती है, उसी के अनुरूप प्रदेश के कर्मचारियों को भी महंगाई भत्ता देने की मांग की जा रही है। वे प्रोफेशनल टैक्स की समाप्ति भी चाहते हैं और केन्द्र सरकार की नीति के अनुरूप पेंशन भी चाहते हैं। उनकी इन मांगों को पूरा करने के लिए राज्य सरकार के पास बहुत पैसा होना चाहिए।

लेकिन राज्य सरकार के लिए सबसे राहत की बात यह है कि विपक्षी कांग्रेस कर्मचारियों के असंतोष से पैदा हुई इस स्थिति का फायदा उठाने में सक्षम नहीं है। प्रदेश कांग्रेस पहले की तरह ही लगातार विभाजित है। इस विभाजन ने उस समय बहुत ही फूहड़ रूप ले लिया था, जब विधानसभा में विपक्ष के नेता अजय सिंह ने कहा था कि कांग्रेस के अनेक नेताओं का भाजपा के नेताओं के साथ व्यापारिक पार्टनरशिप है। अजय सिंह ने उस समय यह आरोप लगाया था, जब वे पार्टी की एक बहुत ही महत्वपूर्ण बैठक को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा था कि जिन कांग्रेस नेताओं के भाजपा के नेताओं के साथ व्यापारिक संबंध हैं, वे भाजपा सरकार की खामियों को जनता के सामने लाने में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। उलटे वे गैरकानूनी खनन जैसी गतिविधियों पर पर्दा डालने की कोशिश करते हैं। उन्होंने सीधा आरोप लगाते हुए कहा कि कुछ गैरकानूनी खनन गतिविधियों में कांग्रेस और भाजपा के नेता एक साथ शामिल हैं।

अजय सिंह का यह आरोप इसलिए खास मायने रखता है, क्योंकि कुछ समय पहले यह खबर प्रकाश में आई थी कि प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया के कुछ रिश्तेदार भाजपा नेताओं के साथ अवैध खनन गतिविधियों में लिप्त हैं। अजय सिंह के उस बयान से पता चलता है कि कांग्रेस बहुत ही कमजोर स्थिति में है। (संवाद)