आज यदि सत्तारूढ़ पार्टी का मूड उत्सव मनाने का नहीं है, तो इसका स्पष्ट कारण भी है। आज पूरे प्रदेश की हालत खराब है। वैसी स्थिति में कोई उत्सव कैसे मना सकता है? सत्तारूढ़ पार्टी का मूड तो चिट फंड घोटाले के कारण भी वैसे ही खराब है। विपक्षी सीपीएम, कांग्रेस और भाजपा तृणमूल कांग्रेस के पीछे इस घोटाले के कारण पड़े हुए हैं।
शारधा चिट फंड घोटाले ने शहरी और ग्रामीण- दोनों इलाकों में मातम को माहौल बना दिया है। ग्रामीण इलाकों में खासकर इसका ज्यादा प्रभाव है और इसके कारण गांवों में तृणमूल के आधार को बहुत बड़ा झटका लग सकता है। वहां अपनी ताकत को लेकर तृणमूल के नेता असहज और असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। शहरी इलाकों में तो तृणमूल के आधार में आई कमजोरी साफ साफ देखी जा सकती है।
ममता बनर्जी अभी भी अपनी सभाओं में भीड़ जुटा रही हैं, लेकिन अब उनके भाषण में पहले जैसा जोश नहीं रहा। अब वे बोलती हैं, तो उनमें पैनापन नहीं दिखाई पड़ता। दिखाने को भले लगे कि वह और उनके समर्थक सब कुछ सामान्य ढंग से ले रहे हैं, लेकिन उनके चेहरे का रंग उड़ा हुआ है।
जब पिछले साल जब ममता सरकार का एक साल पूरा हुआ था, तो इन पंक्तियों के लेखक ने कहा था कि उस दौरान पश्चिम बंगाल में तीन अच्छे बदलाव आए हैं। एक बदलाव तो प्रदेश सरकार द्वारा की गई राजस्व उगाही का था। राजस्व उगाही में पिछले शासन की तुलना में 25 फीसदी का इजाफा हुआ था। दूसरा बदलाव कानून व्यवस्था को लेकर था। प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति अच्छी हुई थी। ममता सरकार को जंगल महल और दार्जिलिंग के इलाकों में शांति बहाल करने में बहुत हद तक सफलता मिली थी। तीसरा बदलाव श्रम के मोर्चे पर था। श्रमिक अशांति भी कम हुई थी।
पिछले साल बुरी घटनाएं अच्छी घटनाओ पर हावी रहीं। औद्योगिक निवेश में भारी कमी आई। सड़क निर्माण परियोजनाओं में ठहराव आया और मेट्रो परियोजनाओं में भी कमजोरी देखी गई। ममता बनर्जी ने केन्द्र सरकार से जो लड़ाई लड़ी उसका असर पड़ा। अंत में तो वे यूपीए से बाहर ही हो गईं। प्रदेश में काम के नये अवसर पैदा नहीं हुए। राजनैतिक हिंसा में भी कोई कमी नहीं आई। तृणमूल समर्थकों ने हिंसा को बढ़ावा दिया। उन्होंने विपक्षियों पर हमले किए। पुलिस मूकदर्शक बनी रही। तृणमूल समर्थक लोगों से उगाही करते दिखाई पड़े। अंत में वे खुद भी एक दूसरे के साथ लड़ते दिख पड़े।
इस बीच ममता बनर्जी व्यापार मेला का उद्धाटन करती दिखाई पड़ीं, लेकिन उद्योगों के लिए जमीन के मसले पर उनका पहले वाला रवैया बरकरार रहा। इसके कारण औद्योगिक निवेश का माहौल लगातार खराब बना हुआ है। यह तो पिछले साल की स्थिति थी। इस साल तो स्थिति और भी बदतर हो गई है।
अब तो सरकार के बार अच्छा कहने के लिए कुछ खास दिखाई भी नहीं पड़ रहा है। सभी तरफ नकारात्मकता का राज चल रहा है। सरकार को अदालतों से भी झटके लग रहे हैं। सिगूर मामले में राज्य सरकार को अदालत से बहुत बड़ा झटका लग चुका है। उस मामले से पता चलता है कि प्रदेश सरकार अपने कामकाज को भी सही तरीके से अंजाम नहीं दे सकती है।
लेकिन सबसे ज्यादा यदि तृणमूल कांग्रेस को किसी ने परेशान किया है, तो वह है शारधा को चिट फंड घोटाला। इसमें गरीब लोगों का 50 हजार करोड़ रुपया लूटा गया है। कुछ लोगों का तो कहना है कि यह घोटाला एक लाख करोड़ रुपये तक का हो सकता है।
कुल मिलाकर प्रदेश में चारों तरफ निराशा का साम्राज्य है और उत्सव मनाने का कोई माहौल नहीं। उदासी के इस माहौल में तृणमूल की ममता सरकार अपने तीसरे साल में प्रवेश कर रही है।(संवाद)
ममता सरकार के दो साल
बंगाल में अभी भी रोशनी की कमी
आशीष बिश्वास - 2013-05-18 09:38
ममता बनर्जी सरकार के दो साल पूरे हो रहे हैं। तीसरे साल में इस सरकार के प्रवेश के साथ कहीं उत्साह का माहौल नहीं दिख रहा। दो साल पूरा होने का उत्सव मनाने का कोई कारण भी नहीं दिखाई पड़ रहा।