गतिरोध की शुरूआत में चीन ने भारत के विकास की संभावनाओं की सराहना की और कहा‘ ‘‘जैसे-जैसे कम खर्च का उत्पादन धीरे-धीरे चीन से बाहर जा रहा है, अब भारत पर है किवह विश्व के अगले कारखाना के रूप में चीन की जगह ले सकता है या नहीं।’’ इससे चीन की बदहवासी का पता चलता है जो पहले हुए सीमा विवादों से अलग है।

किस चीज ने चीन को पलटी खाने को मजबूर किया ? शायद दो कारणों से चीन को70 दिनों के बाद भारत-विरोधी प्रदर्शन रोकना पड़ा और वह भूटान के क्षेत्र में पड़ने वाले टकराव से हट गया। पहला कारण था कि भारतीय उत्पादन के क्षेत्र में और कई ढं़ाचागत निर्माण के प्रकल्पों में चीन निवेश कर रहा है। और, दूसरा एशिया-प्रशांत महासागर क्षेत्र की नीति पर ट्रंपका पुनर्विचार जिससे भारत को धुरी वाली अपनी वह भूमिका,जो ओबामा के समय थी, केफिर से मिलने की संभावना है।

मोदी के शासन में चीन और भारत के बीच आर्थिक संबंध कई गुणा बढ़ गया है। अपने पहले के शासकों से अलग मोदी ने चीनी निवेश को लाने की कोशिश दो लक्ष्यों को पाने के लिए किया है। पहला, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के रूप में चीन का निवेश बढ़ाने के लिए क्योंकि भारत को मेक-इन-इंडिया और रोजगार पैदा करने के लिए काफी धन की आवश्यकता थी, और दूसरा, चीन और भारत के बीच व्यापार असंतुलन को कम करने के लिए डंपिग-विरोधी तरीके अपनाने के बदले चीनी निवेश का इस्तेमाल करने की नीति अपनाने के लिए। लगता है कि चीनी निवेश के बारे में मोदी प्रशासन के दूरदर्शी दृष्टिकोण ने चीनी निवेशकों को झगड़ों को खत्म करने के लिए प्रोत्साहित किया है।

आाखिरकार, इसका फायदा हुआ। चीनी कंपनियों, जो अपने घरेलू बाजार से उखड़ रही थीं, को भारत के प्रगति-पथ, बड़ा मध्य वर्ग और युवा आबादी ने आकर्षित किया है। चीनी स्मार्ट फोन निर्माताओं के छह शीर्ष ब्रांडों ने (जिओमी,ओप्पो, वनप्लस, जिओनी, विवो और हुआवेई) ने भारत में अपने उत्पादन-केंद्र स्थापित किए हैं।

चीनी कंपनियों की वैश्विक महत्वकांक्षा हासिल करने के लिए भारत एक मैदान बन गया है। इन चीनी कंपनियों की विश्व स्तर पर होने वाली बिक्री का 60 से 70 प्रतिशत भारत में होता है। वे अपनी कुल बिक्री का सिर्फ 30 से 35 प्रतिशत ही बाहर के देशों में करती हैं। एक तरह से, भारत विश्व स्तर पर उनकी उपस्थिति के लिए इंजन का काम करता है। जिओमी स्मार्ट फोन की विश्व भर में होने वाली बिक्री का 67, विवों का 73, ओप्पो का 48 प्रतिशत और जिओनी का 25 प्रतिशत भारत में है। इसके अलावा चीन भारत के मेट्रो कोच के उत्पादन में चैथी कंपनी है।

साथ ही, आयात रोकने के भारत के अभियान के हिस्से के रूप में मेट्रो कोच बनाने वालों में चीन चैथी कंपनी है। उत्साही चीनी निवेशकों ने भारतीय अधिकारियों को जगाया किवह निवेश करने की चीनी ताकत को पहचानें, खासकर मेक इन इंडिया प्रोग्राम के लिए। भारत ने वीजा नियमों में ढील बरतने की सोची है और चीन को वीजा की पूर्व निर्दिष्ट श्रेणी (जिसके तहत पूरी छानबीन के बाद ही वीजा दिया जाता है)की सूची से हटाने पर विचार कर रहा है।

मोदी- शी जिनपिंग के संबंध के दोस्ती के क्षितिज में प्रवेश करने के साथ ही चीनी निवेशक भारत में उच्च-निवेश प्रकल्पों में कूद पड़े हैं। सन् 2016 में चीनी कंपनियों ने 2.3 अरब डालर का प्रस्ताव किए है। इसमें दवा कंपनी हैदराबाद ग्रैंड फार्मा लिमिटेड का शंघाई फोसून फर्मास्युटिकल कंपनी द्वारा 86 प्रतिशत हिस्सेदारी लेकर 1.4 अरब डालर का निवेश, मीडिया नेट में बीजिंग मितेनो कम्युनिकेेशन टेक्नोलौजी का 90 करोड़ डालर डालर का निवेश, डायमंड पावर इंफ्रास्टूक्चर में जियंाग्सु लौंगझे का 12.5 करोड़ डालर का निवेश, उत्तम गल्वा मेटलवक्र्स में टिडफोर इक्वपमेंट का 15 करोड़ डालर का निवेश शामिल है।

भारत को महत्वपूर्ण निवेश के स्थानों के रूप में फिर से खोजने के जवाब में, भारत का थिंक टैंक नीतिआयोग, सुरक्षा चिंताओं के बावजूद, चीनी निवेशकों को लुभाने का अपना प्रयास दोहराने में लगा है। करीब53 अरब डालर के व्यापार घाटे, जो अकेले भारत के पूरे वैश्विक व्यापार के घाटे का आधा है, को लेकर हो रही चिंता पर जोर देते हुए भारतीय विशेषज्ञ कहते हैं कि बिना व्यापक आर्थिक संबंधों के भारत चीन का बाजार बना नहीं रह सकता है। नीति आयोग और नेशनल एंड रिफार्म कमीशन आफ चाइना, दोनों ने मई 2016 में आर्थिक सहयोग के कई समझौते में किए हैं जिसमें ऊर्जा, शहरी विकास, डिजिटल इंडिया, इंटरनेट प्लस, और भारतीय आईटी कंपनियों को चीन में बेहतर पहुंच देना शामिल हैं।

चीन की बड़ी कंपनियों की भारत में सफलता की इस पृष्ठभूमि में डोकलाम के गतिरोध ने चीनी कंपनियों को नुकसान पहंुचाया है। ओप्पो तथा विवो कंपनियों की भारत में बिक्री में में कमी आई। जब अगस्त-जुलाई में बिक्री में तेजी से कमी आ गई तो चार सौ से अधिक चीनी प्रवासी घर लौट गए।

चाईना रेलवे कारपोरेशन चेन्नई-नई दिल्ली मार्ग पर हाईस्पीड ट्रेन की व्यावहार्यता का अध्ययन कर रहा है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा अगर चीन हाईस्पीड ट्रªेन के क्षेत्र में जापान के दबदबे को बड़ी चुनौती देता है। चीन ने जापान के साथ कड़ी प्रतिस्पर्धा में जकार्ता-बाडंुग की 150 किमी स्पीड वाली रेल परियोजना को हासिल कर अपनी क्षमता सिद्ध कर दी है। चीन तथा जापान दोनों ने इस प्रोजेक्ट का व्यापक अध्ययन किया था।

भारत में निवेश की चीन की इच्छा के कारण चीन-भारत संबंधों में रणनीतिक बदलाव आ गया है जिससे ये सिर्फ राजनीतिक नहीं बल्कि व्यापारिक हो गए हैं। चीनी मुद्रा युआन के मजबूत होने से कम खर्च में उत्पादन को लेकर जो प्रतिस्पर्धात्मक-लाभ चीन को था वह इसे खोने लगा है और अस्तित्व के लिए वह विदेशी निवेश की होड़ में शामिल हो गया है। भारत के टिकाऊ विकास और विशाल बाजार को देखते हुए चीन भारतीय बाजार के आकर्षण को खोना बर्दाश्त नहीं कर सकता। चीनी निवेशराजनीतिक पहुंच की चीन की आक्रामक नीति के लिए एक चेतावनीहोनी चाहिए। (संवाद)