अंकास्य अर्थोपक्षेपक का ही एक भेद है जिसमें नाटक के किसी अंक के बीच में ही पात्रों द्वारा किसी छूटी हुई अर्थ की सूचना दी जाती है।
अनेक विद्वान अंकास्य को अलग नहीं मानते बल्कि इसे अंकावतार के अन्दर ही रखते हैं।
अनेक विद्वान अंकास्य को अलग नहीं मानते बल्कि इसे अंकावतार के अन्दर ही रखते हैं।