नाटक में कार्य व्यापार
नाटकों में प्रारम्भिक घटना के बाद नाटकीय कार्य व्यापार का प्रारम्भ होता है। प्रस्तावना में जो चरित्र या स्थितियां प्रकट होती हैं उन्हीं को लेकर नाटक की घटनाएं स्वाभाविक गति से आगे बढ़ती हैं और धीरे-धीरे अपनी चरम सीमा तक पहुंचती है।