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योगशास्त्र के अनुसार मेरुदंड में जिस स्थान पर पायु तथा उपस्थ एक साथ जुड़ते हैं वहां पर एक त्रिकोणचक्र अवस्थित है जिसे योगी अग्निचक्र के रुप में जानते हैं। इस त्रिकोणचक्र को मूलाधार कमल की कर्णिका में स्थित माना जाता है।
माना जाता है कि स्वयंभू लिंग इसी अग्निचक्र में अवस्थित है जिसे साढ़े तीन वलयों में घेरकर कुण्डलिनी अपनी पूंछ को मुख में डालकर सोती रहती है। योगीजन इसी को जगाने को कुण्डलिनी जागरण कहते हैं।

Page last modified on Friday December 14, 2012 06:39:53 GMT-0000