अत्यंत तिरस्कृत वाच्य ध्वनि
साहित्य में अत्यंत तिरस्कृत वाच्य ध्वनि वह है जिसे प्रयोग में लाने के समय मूल अर्थ में प्रयोग पूर्णतया परित्यक्त कर दिया जाता है जिसके कारण वह वाच्य ध्वनि मूल अर्थ को इंगित न कर कोई अन्य विशेष अर्थ को इंगित करने लगता है, अर्थात् वह ध्वनि या शब्द वाच्यार्थ से भिन्न अर्थ देने लगता है।
यह ध्वनि भेद लक्षित लक्षण पर आधारित होने के कारण अपने मुख्य अर्थ का त्याग किसी दूसरे अर्थ की सिद्धि कर लिए करता है।
कभी कभी किसी शब्द विशेष के मामले में ही नहीं बल्कि पूरे वाक्य या प्रकरण के मामले में भी होता है जब अर्थ पूरी तरह बदला हुआ होता है।