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अनाहत नाद

योग में अनाहत नाद का अनुभव किये जाने की चर्चा संत साहित्य में मिलता है। आहत ध्वनि का अर्थ है जिह्वा, तालु, दांत गला आदि के आघात के कारण जो ध्वनियां सुनायी देती हैं। ये ध्वनियां उत्पन्न होती हैं तथा समाप्त हो जाती हैं। परन्तु अनाहत ध्वनि या नाद वह ध्वनि है जो कहे-सुने नहीं जाते परन्तु कानों को बंद कर लेने पर सुनायी देती है। योगियों का मानना है कि यह ध्वनि समष्टि व्याप्त शब्द का व्यक्तिगत रूप है। यह ध्वनि स्वयं बिना आघात के निरन्तर उठती रहती है इसलिए यह अनाहत ध्वनि है।

सामान्य स्थितियों में व्यक्ति इस अनाहत ध्वनि के प्रति सजग नहीं रहता, परन्तु जब वह योग, साधना या ध्यान के मार्ग पर आगे बढ़ता है तो चित्त बाह्य विषयों से हटकर अन्तर्मुखी हो जाता है तथा बिना कान बंद किये अनाहत नाद को सुनने लगता है। धीरे-धीरे आगे बढ़ने पर उसे विचित्र ध्वनियां सुनाई देने लगती हैं, जैसे झिंगुर की आवाज, घंटी की आवाज, दुंदुभी का बजना या शंख नाद आदि।

यह अनाहत नाद देश काल की सीमाओं से परे है। इनका न तो आदि है न अन्त। यह अनवरत चलता रहता है। कहा जाता है कि अनाहत नाद सुनायी पड़ना योगी की उच्च अवस्था है।

Page last modified on Monday December 9, 2013 18:25:15 GMT-0000