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अनुभाव

वह भाव जो मूल भाव का बोध करा देता है उसे अनुभाव कहते हैं।

अभिनय में भावों को व्यक्त करने के लिए अनुभाव का सहरा लिया जाता है। जैसे क्रोध का भाव दिखाने के लिए पात्र की भृकुटियां तन जाती हैं।

अनुभाव अनेक प्रकार को हो सकते हैं जिनकी संख्या अबतक निर्धारित नहीं की जा सकी है। परन्तु तीन अनुभाव कायिक (तन की कृत्रिम चेष्टा), मानसिक (मन के अनुभाव) तथा आहार्य (वेष रचना) प्रमुख हैं।

नाटकों में जहां एक ओर अभिनय और शब्दों दोनों का प्रयोग कर अनुभाव के माध्यम से मूल भाव का बोध कराया जाता है वहीं साहित्य में केवल शब्दों के सहारे ऐसा किया जाता है।

चित्रकला आदि में भी इसी तरह बिंबों या रेखाओं आदि का सहारा लेकर मूल भाव को प्रकट किया जाता है।

Page last modified on Saturday December 14, 2013 16:31:57 GMT-0000