अनुष्टुप् एक साहित्य में छन्द है।
पिंगलाचार्य ने अष्टाक्षर चतुष्पाद को अनुष्टुप छंद माना था। वर्णिक मुक्त इस छन्द में आठ-आठ अक्षरों के चार खण्ड होते हैं।अष्टकों (आठ-आठ अक्षरों) का पंचम अक्षर, दूसरे तथा चौथे अष्टकों का सातवां अक्षर लघु होता है। सभी अष्टकों का छठा अक्षर भी लघु होता है। पहले तथा तीसरे अष्टक का सातवां अक्षर दीर्घ होता है।
'साकेत' से उद्धृत यह उदाहरण देखें -
भिन्न भी भावभंगी में, भाती है रूप संपदा
फूल धूल उड़ाके भी, आमोद प्रद है सदा।