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अनुसंधानात्मक आलोचना

अनुसंधानात्मक आलोचना प्रणाली में कृति की ऐतिहासिकता तथा प्रामाणिकता पर ही ध्यान केन्द्रित किया जाता है। रचना तथा रचनाकार के विभिन्न संदर्भों की खोज की जाती है तथा ऐतिहासिक तथ्य एवं प्रतिपादित सत्य से उनकी तुलना करते हुए प्रामाणिकता तथा ऐतिहासिकता पर विशेष बल दिया जाता है।

ऐसी आलोचना प्रणाली का मूल उद्देश्य है समकालीन घटनाक्रमों तथा रचनाओं के साथ रचनाकार के जीवनवृत्त के माध्यम से मूल की खोज करना तथा रचना का मूल्यांकन करना।

इस प्रणाली से पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर आलोचना करने में सहायता मिलती है। सन्दर्भों को समझने के प्रयासों के कारण शब्दों, प्रतीकों और बिंबों आदि को सटीक समझना आसान हो जाता है। प्रामाणिकता पर बल देने के कारण अर्थों के विभिन्न आयामों को समझने में मदद मिलती है तथा ऐतिहासिकता से साथ भावबोध के विभिन्न स्तरों का ज्ञान होता है।

इस आलोचना पद्धति की सीमा है कि वस्तुपरक अध्ययन के कारण कला या साहित्य की रागात्मक अनुभूतियों का विश्लेषण सम्भव नहीं हो पाता क्योंकि यह तो भाव-जगत से सम्बंध रखता है। खतरा यह है कि भाव जगत से यह दृष्टि अनभिज्ञ सी रह जाती है। कला या साहित्य के भाव तथा सौन्दर्य की ओर से यह पद्धति भटका देने का खतरा उपस्थित कर देती है। मूल्यों में भी अन्तर ला देती है तथा लेखक या रचनाकार की नैसर्गिक प्रतिभा की तह तक न पहुंचकर बाह्य या सतही भी रह जाती है।


Page last modified on Wednesday December 18, 2013 07:43:13 GMT-0000