अन्योक्ति
अन्योक्ति साहित्य का एक अलंकार है जिसमें परोक्ष रूप से प्रतीकों आदि के माध्यम से व्यंग्यात्मक शैली में बातें कही जाती हैं जो किसी अन्य की ओर इंगित करते हैं। इसमें कथनों का वह अर्थ नहीं होता जो सतही रूप से दिखता है वरन् कोई और अर्थ होता है।नौवीं शताब्दी में रुद्रट ने इसे स्वतंत्र अलंकार के रूप में स्थापित किया। वेदों, उपनिषदों, रामायण, महाभारत , पुराण आदि ग्रंथों में अन्योक्ति के अनेक उदाहरण मिलते हैं जिसके माध्यम से कुछ और बात कही जाती है। अर्थात् इसकी शैली संकेतात्मक होती है। कई बार तो पशु-पक्षियों के माध्यम से मनुष्य की समस्याओं का विश्लेषण तक किया जाता है।