अपकर्ष जब काव्य के रसास्वादन में बाधा पहुंचती है तो उसे दोष माना जाता है। इसी दोष को अपकर्ष कहते हैं। अपकर्ष होने पर रस, रसाभास, चमत्कार, अर्थ आदि को समझने में विलम्ब हो जाता है।