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अपह्नुति

अपह्नुति एक अलंकार है। गोपन या निषेध इसका शाब्दिक अर्थ है तथा इसी के लिए इसका उपयोग किया जाता है।

अपह्नुति के छह भेद माने गये हैं - शुद्धापह्नुति, हेत्वपह्नुति, पर्यस्तापह्नुति, भ्रान्तापह्नुति, छेकापह्नुति तथा कैतवापह्नुति।

शुद्धापह्नुति में वास्तविक उपमेय का निषेध कर उपमान का आरोप किया जाता है। इस अपह्नुति को शाब्दी भी कहा जाता है।
उदहारण - 'ये दो ओठ न थे राधे, था एक फटा उर तेरा'। इसमें ओठ का निषेध कर उर का आरोप किया गया है।

हेत्वपह्नुति में उपमेय के निषेध के कारण दिखलाते हुए और (उपमान) की स्थापना की जाती है।
उदाहरण - 'पहले आंखों में थे मानस में कूद मग्न प्रिय अब वे। छींटे वही उड़े थे बड़े-बड़े अश्रुवे कब थे'।(साकेत से)

पर्यस्तापह्नुति में किसी वस्तु के धर्म का निषेध दूसरी वस्तु में उसके आरोप के लिए किया जाता है। यदि शाब्दिक अर्थ लें तो यह अपह्नुति पर्यस्त अर्थात् फेंकी हुई अपह्नुति है जिसमें उपमान का ही निषेध किया जाता है ताकि उपमेय में उसे आरोपित किया जाये।
उदाहरण – 'कालकूट विष नहिं, विष है केवल इन्द्रा। हर जागत छकि याहि वा संग हरि नीदौ न तजत।

भ्रान्तापह्नुति में सत्य को उजागर कर किसी भ्रम को दूर किया जाता है।

छेकापह्नुति में किसी बात के उजागर हो जाने पर मिथ्या बात कहकर छिपा दिया जाता है।

कैतवापह्नुति में प्रस्तुत उपमेय का प्रत्यक्ष निषेध न करके कैतव अर्थात् अन्य शब्दों से निषेध किया जाता है।


Page last modified on Tuesday December 24, 2013 17:11:05 GMT-0000