अभाववाद
अभाववाद एक साम्भाव्य ध्वनि विरोधी मत है। यह मानता है कि प्राचीन काव्यशास्त्र में जो ध्वनि सिद्धान्त है उसका जहां अभाव हो और उस अभाव का ही आग्रह हो तब उसे अभाववाद कहा जा सकता है।इन अभाववादियों में भी तीन प्रकार के अभाववादी पाये जाते हैं।
पहले प्रकार के अभाववादियों के अनुसार शब्द और अर्थ तो काव्य शरीर हैं। काव्य का चारुत्व उसमें पहले से ही अन्तर्निहित है। शब्द का सौन्दर्य तो शब्दगुण है जो शब्दालंकार में अन्तर्निहित है। अर्थ का सौन्दर्य अर्थगुण है जो अर्थालंकार में अन्तर्निहित है। वर्णसंघटना के माधुर्य आदि गुण, वृत्तियां तथा रीतियां आदि अपने-अपने स्थान पर प्रतिष्ठित रहती हैं। इसलिए इनसे अलग ध्वनि नामक चीज का कोई अस्तित्व नहीं है।
दूसरे प्रकार के अभाववादियों के अनुसार ध्वनि नाम की कोई वस्तु है ही नहीं। प्राचीन काल के ऐसे अभाववादियों का कहना था कि पूर्ववर्ती किसी आचार्य ने भी इसका उल्लेख नहीं किया है। प्राचीन काल के आचार्यों ने तो शब्द तथा उनके अर्थ के चारुत्व को ही काव्य का लक्षण माना था। इसलिए ध्वनि का नया आविष्कार अमान्य है।
तीसरे प्रकार के अभाववादी सिद्धान्तकारों के अनुसार ध्वनि नामक वस्तु का आविष्कार एक मिथ्य आविष्कार है। गुण और अलंकारों के भेदाभेद में ही इसे मानना संभव जान पड़ता है परन्तु इसका कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है।