इन्द्रियवाद
इन्द्रियवाद एक मत है। यह दर्शन शरीर के ज्ञानेन्द्रियों तथा कर्मेन्द्रियों को अत्यधिक महत्व देता है और कहता है कि इसके बिना न तो इस जगत का ज्ञान ही हो सकता है और न ही कोई सुख ही प्राप्त किया जा सकता है। चूंकि इन्द्रियां ही चेतना की संवाहक हैं, इसलिए इन्द्रियों के बिना चेतना का क्या प्रयोजन। इसलिए सत्, चित् और आनन्द की प्राप्ति के लिए यही साधन हैं। इस प्रकार यह इन्द्रियगोचरवाद के निकट पहुंचता है। यह इन्द्रियानुबोधता को ही प्रश्रय देता है।