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उद्दीपन विभाव

साहित्य में रस को उद्दीप्त करने वाले आलम्बनों, जैसे देश, काल, परिस्थिति, चेष्टा आदि, को उद्दीपन विभाव कहते हैं।

ये विभाव हृदय के स्थायी भावों को जगा देते हैं। रसों के उद्दीपन के आधार पर इन विभावों के भेद किये गये हैं।

शारदातनय ने इसके आठ भेद बताये हैं - ललित, ललिताभास, स्थिर, चित्र, रूक्ष, खर, निन्दित तथा विकृत।

मन को आह्लादित करने वाले उद्दीपन विभावों को ललितोद्दीपन विभाव कहते हैं। इससे श्रृंगार की उत्पत्ति मानी जाती है। ललित भाव प्रत्यक्षतः इन्द्रियगोचर होते हैं।

ललिताभास वे हैं जो ललित भावों का आभास उत्पन्न करते हैं। ये प्रत्यक्ष नहीं होते। पूर्व श्रुत, स्मरण, या दृष्ट वस्तुओं का परोक्ष में आभास मात्र होता है।

स्थिर उद्दीपन विभाव मन में स्थिर भाव उत्पन्न करते हैं। ऐसे उद्दीपन मन में हमेशा बना रहता है।

विचित्र अनुभवों के उद्दीपन करने वाले विभावों को चित्र विभाव कहते हैं।

करुणा के भाव को उत्पन्न करने वाले विभावों को रूक्ष विभाव कहते हैं।

कातरता या रुद्र भाव के उद्दीपक विभावों को खर विभाव कहते हैं।

वीभत्स भाव उत्पन्न करने वाले उद्दीपकों को निन्दित विभाव कहते हैं।

भयावहता के भाव के उत्पन्न करने वाले विकृति उद्दीपक विभाव कहे जाते हैं।


Page last modified on Thursday July 31, 2014 06:04:40 GMT-0000