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उन्मनी

अध्यात्म में उन्मनी एक प्रकार का साधक होता है। उन्मनी होने का अर्थ है इस अन्यमनस्क संसार से निर्लिप्त हो जाना। इसे अनमना होना भी कहा जाता है।

परन्तु हठयोग की पांच मुद्राओं में उन्मनी एक एक मुद्रा है। उन्मनी मुद्रा में दृष्टि को नाक की नोक पर स्थिर किया जाता है और साथ-साथ भौंओँ को ऊपर की ओर चढ़ाया जाता है।

साधक के लिए उन्मनी साधना के महत्व को बताते हुए कबीर कहते हैं कि उन्मनी न तो हंसता है और न बोलता है। उसके मन की चंचलता समाप्त हो जाती है। वह कहते हैं कि सत् गुरु का यह एक हथियार है जिसका उपयोग करते हुए वह अपने शिष्य को अन्तर्विद्या प्रदान करता है।

गोरखबानी में कहा गया है कि उन्मनी ध्यान लगते ही आनन्द का अनुभव होने लगता है।


Page last modified on Thursday July 31, 2014 06:06:50 GMT-0000