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उष्णीय कमल

सामान्य योग परम्परा में उष्णीय कमल सहस्रदल कमल को कहा जाता है जो सातवां और सर्वोच्च चक्र सहस्रार में अवस्थित है। यह सिर में सबसे ऊपर होता है। इसके नीचे छह चक्र हैं। ये चक्र हैं - मूलाधार चक्र, स्वाधिष्टान चक्र, मणिपुर चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्धि चक्र तथा आज्ञा चक्र। प्रत्येक चक्र कमल की आकृति का है और उनमें अलग-अलग संख्या में दल हैं।

तन्त्र एवं हठयोग में इसका नाम सहस्रदल है। वज्रगुरु का आसन इसी की कर्णिका के मध्य माना जाता है। ऐसे योगियों का मानना है कि मध्यमार्ग के अवलम्बन से उस स्थान को पाया जाता है।

बौद्ध दर्शन तथा सिद्धों में चक्रों की परिकल्पना भिन्न है। उनके अनुसार भी इस सर्वोच्च चक्र को उष्णीय कमल ही माना जाता है परन्तु उसमें वे कुल 64 दल ही बताते हैं। मेरु गिरि के शिखर पर यह उष्णीय कमल चार मृणालों पर विराजमान है, जो महासुख का निवासस्थान है। प्रत्येक मृणाल के चार-चार क्रम हैं तथा प्रत्येक क्रम के चार-चार दल हैं।

उष्णीय कमल के चार दलों के चार शून्यों के अनुसार चार नाम हैं - शून्य, अतिशून्य, महाशून्य, तथा सर्वशून्य।

जालन्धर नामक हेमगिरि शिखर डाकिनी के मायाजाल से घिरा हुआ है। यही सर्वशून्य का आवास है। यही उष्णीय कमल है।

भुसुकपा कहते हैं कि इस नलिनीवन या पद्मवन में प्रवेश कर चित्त द्विधाहीन हो जाता है। भगवती नैरात्या का वास स्थान यहीं है, और इसी कारण उन्हें भी कमलिनी कहा जाता है।

कण्हपा के अनुसार इसमें महासुख का वास है।

बौद्ध दर्शन के चार चक्रों में उष्णीय कमल चौथा सर्वोच्च चक्र है। तीन अन्य चक्र हैं - निर्माण चक्र, धर्म चक्र तथा सम्भोग चक्र।


Page last modified on Sunday August 3, 2014 05:48:26 GMT-0000