ऊढा
ऊढा या परोढा एक नायिका है। यह परकीया नायिका का एक भेद है।यह नायिका किसी की विवाहिता होती है इसलिए इसे ऊढा कहा गया, और यह किसी अन्य से प्रेम करती है इसलिए परोढा।
ऐसी नायिकाओं में भावात्मक विषमताएं पायी जाती हैं। प्रेम में गोपन का भाव प्रधान होने और स्थितियों में लगातार होने वाले परिवर्तनों के कारण उनके प्रेम में भी विविधताएं पायी जाती हैं। ये विविधताएं उद्वेग, आकांक्षा, चिन्ता, दुविधा, वेदना, व्याकुलता आदि अनेक रूपों में प्रकट होती हैं।
कृष्णभक्ति सम्बंधी काव्य में ऐसी गोपियों के प्रेम का वर्णन अत्यधिक चमत्कारिक ढंग से हुआ है, क्योंकि वे जहां एक ओर ब्याही हैं वहीं दूसरी ओर अपने पति को नहीं बल्कि कृष्ण से ही प्रेम करती हैं। लोक लज्जा, कलंक, इधर अपने पति और अपना घर-परिवार और उधर भगवान कृष्ण। विचित्र दुविधा और धर्मसंकट की स्थिति है। न कृष्ण को छोड़ने की स्थिति है और न इस संसार को। स्वयं को कृष्ण के प्रेम में डुबो तो दिया पर कृष्ण गोकुल को छोड़ मथुरा चले गये और गोपियां व्याकुल हो गयीं। कहती हैं (पद्माकर के शब्दों में) -
हौं तो स्याम रंग मैं चुराई चित्त चोरा चोरी
बोरत तो बोरयो पैं निचोरच बनै नहीं।
रीतिकाव्य में भी ऐसी नायिकाओं का चित्रण बहुतायात में हुआ है।