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ऊर्ध्वचेतन

मनोविज्ञान में ऊर्ध्वचेन वह अवस्था है जब स्नायुमंडल अत्यधिक उत्तेजनशील रहता है।

इसके अनेक कारण हो सकते हैं जिनमें एक कारण रोग ग्रस्तता, विशेषकर स्नायविक रोग, भी हो सकता है। बिना किसी रोग के भी ऊर्ध्वचेतन या अतिचेतन अवस्था आ सकती है, जो परिस्थितियों की उपज होती है।

दर्शन तथा अध्यात्म में ऊर्ध्वचेतन या अतिचेतन किसी साधक यो योगी की वह अवस्था मानी जाती है जब इन्द्रियातीत चेतना जाग जाती है।

जब यह ऊर्ध्वचेतना जाग जाती है तो योगी एक विशेष द्रष्टा हो जाता है जिसे ध्यानमुद्रा में दूर के किसी स्थान या समय में होने वाली अगोचर घटनाओं, वस्तुओं या व्यक्तियों आदि को देखने की शक्ति हो जाती है। ये किसी भी काल या किसी भी स्थान की हो सकती है जहां योगी इस शरीर से कभी गया ही नहीं।


Page last modified on Sunday August 3, 2014 09:39:39 GMT-0000