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एकपात्रीय नाटक

वे नाटक जो एक ही पात्र द्वारा अभिनीत होते हैं उन्हें एकपात्रीय नाटक कहा जाता है।

ऐसे नाटक बीसवीं शताब्दी में प्रचलन में आये। यह विधा पाश्चात्य साहित्य की देन है।

अनेक लोग इसे स्वगतभाषण भी कहते हैं, और कई इसे एकपक्षीय संवाद भी मानते हैं।

इसे मनोवैज्ञानिक कथावस्तु के चित्रण के लिए, तथा एक नाट्य शैली के रूप में भी, प्रयोग में लाया जाता है।


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