कवि भेद
कवि की अलग-अलग श्रेणियां कवि-भेद कहलाती हैं।राजशेखर ने कविशिक्षा के अन्तर्गत शिष्यों के आधार पर कवियों के तीन भेद बताये हैं - सारस्वत, आभ्यासिक, तथा औपदेशिक। परन्तु उन्होंने ही काव्यशास्त्र में निपुणता के आधार पर कवियों के आठ भेद बताये हैं - रचना कवि, शब्द कवि, अर्थ कवि, अलंकार कवि, उक्ति कवि, रस कवि, मार्ग कवि, तथा शास्त्रार्थ कवि। केशवदास ने गुणवत्ता के आधार पर कवियों के तीन भेद बताये हैं - उत्तम, मध्यम तथा अधम।
सारस्वत कवि वे हैं जिन्हें पूर्व जन्म के संस्कारों के कारण सरस्वती का प्रसाद प्राप्त रहता है।
आभ्यासिक कवि वे हैं जो अभ्यास करते करते कवि बन जाते हैं।
औपदेशिक कवि वे हैं जो किसी प्रभाव (मंत्र-तन्त्र आदि) से कवि कवि बन जाते हैं।
पदों के संयोजन में जो निपुण होते हैं वे रचना कवि कहे जाते हैं।
शब्दों के संयोजन में जो निपुण होते हैं वे शब्द कवि कहे जाते हैं।
अर्थ सौन्दर्य में जो निपुण होते हैं वे अर्थ कवि कहे जाते हैं।
अलंकारों को प्रयोग में जो निपुण होते हैं वे अलंकार कवि कहे जाते हैं।
जो चमत्कारिक ढंग से उक्तियों को काव्य में परिणत करने में कुशल होते हैं वे उक्ति कवि कहे जाते हैं।
जो रस निर्वाह में निपुण होते हैं वे रस कवि कहे जाते हैं।
जो रीतियों के प्रयोग में निपुण होते हैं वे मार्ग कवि कहे जाते हैं।
जो शास्त्रों के अर्थों को अपनी कविता में शामिल करते हैं वे शास्त्रार्थ कवि कहे जाते हैं।
जो इन सभी गुणों से परिपूर्ण हैं तथा जो अपने काव्य में इन सभी गुणों का कुशलता से समावेश करते हैं वे महाकवि कहे जाते हैं।
उन कवियों को उत्तम कहा जाता है जो हरि रस में लीन रहते हैं।
मध्यम स्तर के कवि वे हैं जो मनुष्य के संदर्भ में उनके कल्याण को ही ध्यान में रखते हुए काव्य रचना करते हैं।
अधम कवि वे हैं जो गुणों को त्यागकर दोषों या अवगुणों को ही महिमामंडित करते हुए काव्य रचना करते हैं।