कुंडल छन्द पद्य में कुंडल मात्रिक सम छन्द का एक भेद है। सूरदास के सूरसागर में तथा तुलसीदास की विनयपत्रिका में इस छन्द का व्यापक रूप से प्रयोग किया है। इस छन्द की विशेषता है कि इसमें भावावेग को अत्यधिक सफलता से प्रकट किया जा सकता है।