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खड़ीबोली

खड़ीबोली वह बोली है जो दिल्ली-मेरठ के समीपस्थ क्षेत्रों में बोली जाती है। भाषाशास्त्र में इसे गांवों में बसने वाले समुदायों की बोली माना गया है। खड़ीबोली के आरम्भिक अर्थ, नामकरण, स्वरूप, अर्थ, प्रयोग और इसके विकास को लेकर विद्वानों की अलग-अलग विचारधाराएं हैं।

भाषा वैज्ञानिकों का मानना है कि यही खड़ी बोली मानक हिन्दी भाषा, उर्दू तथा हिन्दुस्तानी के मूल में है। हिन्दी साहित्य में अवधि और ब्रज आदि बोलियों को भी शामिल किया गया है परन्तु आधुनिक साहित्य की भाषा से अवधि और ब्रज लगभग गायब हैं, इसलिए आधुनिक हिन्दी साहित्य एक प्रकार से खड़ीबोली साहित्य ही है। इस प्रकार आधुनिक मानक हिन्दी खड़ीबोली को ही माना जाता है।

विद्वानों का एक वर्ग मानता है कि मधुर ब्रजभाषा की तुलना में कर्कश, कटु, खरा आदि से युक्त जो भाषा थी उसे खड़ीबोली कहा गया। यह नाम लल्लूजीलाल (1803) से पहले ही आ गया था।

कुछ विद्वान उर्दू से इसकी तुलना करते हैं और कहते हैं कि उर्दू से खड़ीबोली अधिक प्रकृत, शुद्ध और ग्रामीण ठेठ बोली है, जिसके कारण इसे खड़ी बोली कहा गया।

कुछ विद्वान खड़ी का अर्थ सुस्थिर, सुप्रचलित, सुसंस्कृत, परिष्कृत, और परिपक्व लगाते हैं, और इस तरह इसे खड़ीबोली कहते हैं।

कुछ लोग ब्रज जैसी ओकारान्त बोलियों को पड़ी बोली तथा उसके विपरीत को खड़ी बोली मानते हैं।

कुछ विद्वाना रेखता को पड़ी तथा उसके विपरीत इस भाषा को खड़ी मानते हैं।

मध्य काल में खड़ीबोली नाम कहीं नहीं मिलता। उन्नीसवीं सदी के पहले दशक में लल्लूजीलाल द्वारा दो बार, सदल मिश्र द्वारा दो बार तथा गिलक्राइस्ट द्वारा छह बार इस शब्द का प्रयोग किया गया है।

खड़ी बोली नाम सर्वप्रथम हिन्दी या हिन्दुस्तानी की उस शैली के लिए दिया गया जो उर्दू की अपेक्षा अधिक शुद्ध और भारतीय थी, तथा जिसका प्रयोग संस्कृत परम्परा या भारतीय परम्परा से सम्बंधित लोग अधिक करते थे। यह नागरी लिपि में लिखी जाती थी। 1805 ईस्वी तक हिन्दी, हिन्दुस्तानी और उर्दू समानार्थक ही थे, जैसा कि गिलक्राइस्ट का कहना है, परन्तु भारतीय परम्पराओं से अधिक निकट होने के कारण हिन्दी के स्वरूप को अधिक शुद्ध माना गया और इस प्रकार शुद्ध या खड़ी बोली का नाम प्रचलन में आ गया।

1823 ईस्वी के बाद जिस भाषा-शैली को हिन्दी कहा गया, वास्तव में वही खड़ी बोली है।

खड़ीबोली के दो रूप हैं - पूर्वी खड़ीबोली तथा पश्चिमी खड़ी बोली।

खड़ीबोली का प्रारम्भिक प्रयोग गोरखवाणी में भी मिलता है।

खड़ी बोली जहां बोली जाती है वे स्थान हैं - मेरठ, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर-देहरादून के मैदानी क्षेत्र, अम्बाला, कलसिया और पटियाला के पूर्वी भाग, रामपुर, मुरादाबाद, दिल्ली, करनाल, रोहतक, हिसार, पटियाला, नाभा, झींद, मेवात आदि। हरियाणा, राजस्थान, पंजाब तथा उत्तराखंड की पहाड़ी बोलियों का मिश्रण भी खड़ी बोली में मिलता है तथा ब्रज तथा अवधि का मिश्रण भी।


Page last modified on Wednesday September 3, 2014 07:33:32 UTC : Initial version