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गर्भ-संधि

रूपकों या नाटकों में उस भाग को गर्भ-संधि कहा जाता है जिसमें किसी कार्य की सम्पन्नता या उसके फल की प्राप्ति संदेह के घेरे में होता है। कभी उम्मीद जगती है और कभी उम्मीद ही नहीं रहती। परन्तु फल बीज रूप में वहीं छिपा रहता है। फल के आविर्भाव और तिरोभाव की मनःस्थिति में कुतूहल की तीब्रता बढ़ जाती है। फल के गर्भस्थ होने के कारण ही ऐसे दृश्यों को गर्भ-संधि कहा जाता है।


Page last modified on Saturday February 21, 2015 16:49:24 GMT-0000