गान
गान संगीत की एक विधा है - गीत का कर्तृ रूप। इस प्रकार गीतों को गाने की क्रिया को गान कहते हैं।गान का प्रारम्भ अनादि काल से माना जाता है। मान्यता है कि गान विद्या का सर्जन स्वयं भगवान शिव ने किया था तथा उन्होंने नारद को इसकी विधिवत् शिक्षा दी थी। नारद के माध्यम से यह पृथ्वी लोक पर आयी।
विद्वानों का कहना है कि गान में चित्त की सभी वृत्तियां विलीन हो जाती हैं तथा इस प्रकार गान अपनी चरम अवस्था में पहुंचकर आध्यात्मिक हो जाता है।
गान पद्धति में श्रृंगार तथा हास्य में मध्यम एवं पंचम स्वरों का; वीर, रौद्र तथा अद्भुत में षड्ज एवं ऋषभ का; करुण रस में गान्धार एवं निषाद का; तथा वीभत्स एवं भयानक में धैवत का प्रयोग किया जाता है।