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गोपीचंद्र

गोपीचंद्र 11वीं शताब्दी के पूर्वार्ध के एक राजा थे जो 18 वर्ष के उम्र में संन्यासी हो गये थे तथा उन्हें 12 वर्षों बाद एक वेश्या की दासता से मुक्त कराया गया था। घर लौटकर वह पुनः राज काज मे लग गये तथा गृहस्थ जीवन में रहे। आज जो जोगी घुम-घुम कर गीत गाते हुए भिक्षाटन करते मिल जाते हैं उनमें से अधिसंख्य गोपीचंद्र की लोकगाथा ही गाते हैं। नाथ सम्प्रदाय के अनुयायी साधु विशेष रुप से ऐसा करते हैं और साथ में सारंगी भी बजाते चलते हैं। गोपीचंद्र की गाथा सम्पूर्ण उत्तर भारत में प्रसिद्ध है। दक्षिण के राजा राजेन्द्र चोल के तिरुमलाई के शिलालेख तथा फरीदपुर एवं ढाका में प्राप्त ताम्रपत्रों में उनका उल्लेख मिलने के बाद यह सिद्ध हो गया है कि गोपीचंद्र कोई कल्पित नाम नहीं है जैसा कि पहले समझा जाता था, बल्कि वह एक ऐतिहासिक व्यक्ति थे।

गोपीचंद्र के गीतों से पता चलता है कि उनका जन्म उत्तरी बंगाल के रंगपुर जिले में हुआ था। उनकी माता का नाम मयनामती था तथा उन्हीं के नाम पर 'मयनामतीर कोट' नामक एक स्थान भी है। उनके पिता का नाम था मानिकचन्द्र, जो रंगपुर के राजा थे। वह गन्धवणिक जाति के थे। वह योगविद्या में निपुण थी। मानिकचंद्र के भाई का नाम था धर्मपाल। उनके परिवार का सम्बंध बंगाल के पाल राजपरिवार से भी था।

मानिकचंद्र के निधन के बाद उनकी पत्नी मयनामती को उनके गुरु गोरखनाथ ने उन्हें पुत्रवती होने का वरदान दिया। जब उनको पुत्र हुआ तो उसका नाम गोपीचंद्र रखा गया। बड़े होने पर गोपीचंद्र का विवाह राजा हरिश्चन्द्र की पुत्री अदुना से हुआ। उन्हें अदुना के साथ उनकी बहन पदुना भी पुरस्कार स्वरुप मिलीं। वह इस प्रकार राज्य सुख तथा विषयवासना में फंस गये।

परन्तु उनकी माता मयनामती को योगबल से मालूम था कि 18 वर्ष की आयु तक गोपीचन्द्र योगी नहीं बने तो मृत्यु को प्राप्त होंगे। इसलिए मयनामती ने अपने पुत्र गोपीचंद्र को संन्यास ले लेने का उपदेश दिया। गोपीचंद्र ने हाड़ीसिद्ध को अपना गुरु बनाया और जोगी हो गये। समय आने पर हाड़ीसिद्ध ने गोपीचंद्र की परीक्षा लेने के लिए उन्हें हीरा नामक एक वेश्या के हाथों बेच दिया। उस वेश्या ने गोपीचंद्र को वासना में भटकाने का पूरा प्रयास किया परन्तु वह भटके नहीं। फिर हीरा ने गोपीचंद्र को अनेक अन्य कठोर तथा नीच कामों में लगाया। गोपीचंद्र की दुर्दशा का पता जब उनकी माता मयनामती को लगा तो उन्होंने हाड़ीसिद्ध की सहायता से उन्हें मुक्त कराया। परन्तु इस बीच उस वेश्या के साथ उनके 12 वर्ष बीत गये थे। गोपीचंद्र जब घर लौटे तो पुनः राज्य कार्य में लग गये तथा गृहस्थ बन गये।

Page last modified on Saturday March 21, 2015 06:12:03 GMT-0000