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चंद्रावल

चंद्रावल एक प्रकार की गीत-कथा है। भारतीय लोकगीतों में कई चंद्रावल गीत पाये जाते हैं, जिनकी कथाएं भी भिन्न-भिन्न हैं। एक चंद्रावल सावन के महीने में गायी जाती है, एक दीपावली के दूसरे दिन और कई अन्य किसी दूसरे अवसरों पर।

मूलतः चंद्रावल सावन के महीने में झूले पर गायी जाने वाली एक गीत-कथा है। इसे चंद्रावलि के नाम से भी जाना जाता है, परन्तु वास्तव में चन्द्रावलि नाम की एक कन्या (कहीं-कहीं व्याहता के रूप में उद्धृत) के सम्बंध में गाये जाने वाले गीत को ही चंद्रावल कहा जाता है। यह कुरुक्षेत्र, राजस्थान, बुंदेलखण्ड तथा गंगा के मध्यवर्ती मैदानी भागों में विशेष रूप से प्रचलित है। यह गीत लगभग पांच-छह शताब्दियों से पारम्परिक रूप से चली आ रही है।

यह कथा कई रूपों में अन्य क्षेत्रों में भी थोडे-बहुत अन्तर के पायी जाती है। कथा इस प्रकार है -

एक दिन मुगलों की सेना ने चंद्रावलि के गांव के निकट डेरा डाला। चन्द्रावलि, अपनी मां के मना करने पर भी घड़ा लेकर पानी भरने पहुंची। मुगलों ने उसे पकड़ लिया तथा अपने तम्बुओं में कैद कर लिया। उसके बाद चन्द्रावलि के पिता, भाई आदि सभी बारी-बारी से उसे छुड़ाने के लिए मुगलों के पास पहुंचे परन्तु उन्होंने उसे नहीं छोड़ा। तब धोखा देकर चंद्रावलि ने तम्बुओं में आग लगा दी और जल गयी।

बुंदेलखंड में मथुरावली नामक जो गीत-कथा गायी जाती है उसकी कहानी भी चंद्रावलि की कहानी जैसी ही है। केवल चंद्रावलि के स्थान पर मथुरावली शब्द का प्रयोग हुआ है।

इस गीत-कथा में पाठभेद भी मिलता है। जैसे कई स्थानों पर गाये जाने वाले गीत में मुगलों के स्थान पर तुरुक शब्द का प्रयोग मिलता है।

मालवा क्षेत्र में चन्द्रावल नाम से एक और गीत-कथा प्रचलित है जो दीपावली के दूसरे दिन गायी जाती है। इस कथा में चन्द्रावलि नाम की एक गुजरी है जो भगवान श्रीकृष्ण को अपने यहां आमंत्रित करती है। वह रात छह मास की हो जाती है और उसका पति गोरधन गोशाला में प्रतीक्षा करते हुए गायों के खुरों से कुचलकर मर जाता है। उसी की स्मृति में गोरधन छापने तथा चंद्रवल गाने की परम्परा है।


Page last modified on Wednesday April 22, 2015 06:37:09 GMT-0000