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चरण

चरण शब्द का अर्थ है पैर या पाद। परन्तु हिन्दी साहित्य में चरण किसी छन्द की प्रधान यति पर समाप्त होनेवाली पूरी पंक्ति को कहा जाता है।

चतुष्पाद में चार चरण होते हैं, तथा मात्रिक यति-गति एवं मात्रा-संख्या में ये एकरूप होते हैं। परन्तु वर्णिक छन्दों में यति-गति के अतिरिक्त वर्ण-क्रम तथा वर्ण-संख्या पर भी ध्यान दिया जाता है।

वैदिक छन्दों में त्रिपाद गायत्री, त्रिपाद अनुष्टुप आदि तीन चरणों के छन्द भी पाये जाते हैं। षट्पद में छह चरण होते हैं जो हिन्दी में छप्पय के नाम से जाने जाते हैं। मिलिन्दपाद में भी य़ह चरण होते हैं।

सम, विषम, तथा अर्धसम छन्दों के नाम चरणों में समानता, विषमता और अर्धसमता के आधार पर ही पड़े हैं।

परन्तु कुछ विद्वान सम संख्या में चरणों वाले छन्दों को सम तथा विषम संख्या के चरणों वाले छन्दों को विषम छन्द कहने के पक्ष में भी हैं, परन्तु अधिकांश इस परिभाषा के नहीं मानते, क्योंकि तब यति-गति आदि की समता-विषमता का अर्थ नहीं रह जाता।

Page last modified on Friday June 19, 2015 05:41:23 GMT-0000