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चर्चरी

चर्चरी एक लोकगीत था जो भारत में आगरा और सके आसपास के क्षेत्रों में 12वीं शताब्दी से पूर्व काफी लोकप्रिय था। यह वसन्त ऋतु में नृत्य करते हुए गाया जाता था। इसका उल्लेख प्राचीन साहित्य में मिलता है परन्तु उदाहरण उपलब्ध नहीं हैं। जिनदत्त सूरि नामक एक कवि ने इसकी शैली को अपनाया था, ऐसा उल्लेख मिलता है। कालिदास तथा श्रीहर्ष के नाटकों में भी चर्चरी का उल्लेख आता है। अनुमान है कि यह श्रृंगार प्रधान लोकगीत होगा।

कबीर बीजक में चांचर शब्द का प्रयोग एक गीत के लिए किया गया है। अनुमान है कि यह चर्चरी ही था।

कुछ लोगों का अनुमान है कि चांचर नामक एक खेल का उल्लेख की टीकाओं में आता है परन्तु यह इस चर्चरी से भिन्न था। कबीर ने जिस चांचर का उल्लेख किया है वह चर्चरी था, तथा चांचर नामक खेल के उसका सम्बंध नहीं था।

Page last modified on Saturday June 20, 2015 16:27:16 GMT-0000