चर्या
चर्या का अर्थ है किसी भी व्यक्ति के काम करने का ढंग। कब, क्या तथा कैसे कार्यों को सम्पन्न किया जाये उसकी व्यवस्था के अनुरूप काम करने को ही चर्या कहते हैं।दिन में की जाने वाली चर्या को दिनचर्या, रात्रि की चर्या को रात्रिचर्या, ऋतु विशेष की चर्या को ऋतुचर्या आदि नामों से जाना जाता है।
चर्या बौद्ध धर्म की महायान शाखा में एक साधना पद्धति का नाम भी है। इस साधना को महायान के धर्म और साधना-पथ में बोधिचित्त को उत्पन्न करने के लिए किया जाता है। बोधिचित्तोत्पाद के बाद उसे ऊपर की ओर उद्बुध किया जाता है और तब अनन्त करुणा का उदय होता है। इस साधना पद्धति में छह पारमिताओं की साधना करनी पड़ती है। अन्तिम प्रज्ञा-पारमिता के सम्पन्न करने के साथ यह साधना पूरी होती है।
चर्या जनसुलभ नहीं है परन्तु जो साधक इसे कर लेता है वह अल्प बन्धन से मुक्त अनुत्तर सम्बोधि को प्राप्त कर लेता है। उसके बाद वह साधक लोकबन्धु तथा लोकरक्षक हो जाता है।
उल्लेखनीय है कि प्रज्ञा तथा उपाय का अद्वय ही चर्या तथा क्रिया दोनों का मूल उद्देश्य है तथा विधि, देवी-देवता, उनकी साधनाएं, दीक्षा, अभिषेक, मण्डल आवेश आदि इनके अन्तर्गत हैं।