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चूलिका

नाटकों में चूलिका का प्रयोग अर्थोपक्षेपक के एक भेद के रूप में किया जाता है। जब नाटक का मंचन हो रहा होता है तब नेपथ्य से कोई पात्र अर्थ या कथावस्तु की सूचना देता है। ऐसी सूचना को ही चूलिका कहा जाता है।

उदाहरण के लिए भारतेन्दु रचित 'सत्य हरिश्चन्द्र' नाटक में कई बार चूलिका का प्रयोग किया गया है। जैसे जब हरिश्चन्द्र अपनी ही पत्नी से अपने ही पुत्र के शव दाह के लिए पहले कफन मांगने लगते हैं तो नेपथ्य से आवाज आती है - अहो धैर्यमहो सत्यमहो दानमहो बलम्। त्वया राजन् हरिश्चन्द्र सर्वलोकोत्तर कृतम्। ऐसे ही कथनों को चूलिका कहते हैं।

Page last modified on Wednesday November 2, 2016 07:13:17 GMT-0000