चेतन
जीवधारियों का एक विशेष गुण है चेतन। उस हर अवस्था को चेतन कहा जाता है जिसमें जीवधारी को अनुभूति का ज्ञान रहता है। इस प्रकार चेतन मानस में जो अनुभव और व्यापार आते हैं उनका हमें पूर्ण ज्ञान होता है। सभी जीव जगत को चेतन जगत कहते हैं।मनोविज्ञान में चेतन वह अवस्था है जब स्नायविक गतिविधियां उस स्तर पर पहुंचकर गहरी हो जाती हैं जिस स्तर पर हमें अनुभव होने लगता है।
मनोविज्ञान के विकास के प्रारम्भिक वर्षों में माना जाता था कि मानस सदा चेतन है। उस समय अचेतन मानस की कल्पना तक नहीं की गयी थी। परन्तु मनोविज्ञान के विकास के साथ-साथ अब मनोवैज्ञानिक मानने लगे हैं कि अचेतन मानस भी होता है, तथा चेतन मानस हमारे पूर्ण मानस का एक अंश मात्र है।
चेतन मानस ही बाह्य जगत के सम्पर्क में आता है और पूर्णतः व्यक्त भी होता है। फ्रयड के अनुसार यह पक्ष व्यक्तित्व के अहम (ईगो) और सुपरईगो से जुड़ा होता है परन्तु इड इसकी पहुंच से बाहर होता है।
जाग्रत अवस्था में यह चेतन मन क्रियाशील रहता है। यह विचारशील है। इसमें विवेक है, तर्कशक्ति है, संवेदना है। ध्यान देना तथा प्रत्यक्षज्ञान करना इसकी प्रक्रियाएं हैं।