जनपद
प्राचीन भारत में जनपद राजनीतिक तथा प्रशासनिक दृष्टिकोण से एक स्वतंत्र भूभाग होता था। प्रत्येक जनपद में एक पुर होता था जहां जनपद के राजा रहते थे। यही पुर जनपद का प्रमुख शहर होता था। राजा का ज्येष्ठ पुत्र जनपद का उत्तराधिकारी होता था। राजा को शासनव्यवस्था में सहयोग करने के लिए एक सभा और एक समिति होती थी। बाद में सभा को ही पौर तथा समिति को जानपद कहा जाने लगा था। जनपद आर्यावर्त की एक प्रमुख विशेषता थी, परन्तु साम्राज्य काल में जनपदों के पृथक अस्तित्व का लोप हो गया।प्रारम्भ में सभी जनपद स्वतंत्र थे परन्तु बाद में धीरे-धीर कुछ जनपद अधिक शक्तिशाली बनकर उभरे। इस प्रकार क्षेत्र के अन्य छोटे-छोटे जनपद किसी शक्तिशाली जनपद के अधीन होते गये, और महाजनपद अस्तित्व में आये।
बौद्ध साहित्य में भारत में 16 महाजनपदों का उल्लेख मिलता है। ये हैं - कुरू, पांचाल, शूरसेन, मलय, कोमल, काशी, वृजि, मल्ल, मगध, अंग, चेदि, वत्स, अवन्ति, अश्मक, गान्धार तथा कम्बोज। अश्मक, गांधार, तथा कम्बोज को छोड़ सभी 13 महाजनपद आर्यावर्त के मध्यदेश में थे।
अब ये जनपद नहीं हैं। केवल साहित्य में इनका उल्लेख होता है।
वर्तमान उत्तर प्रदेश के जिलों को आज जनपद कहा जाता है, परन्तु प्राचीन काल में ये तो राष्ट्र थे।