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जन-साहित्य

वह साहित्य जो समाज की आत्मा के साथ तादात्म्य स्थापित करता है, तथा जिसका सम्पर्क सामाजिक हित तथा कल्याण से है। यह जनता की आशाओं, आकांक्षाओं, सुख-दुख आदि का प्रतिबिम्ब है। यह लोक साहित्य है, जो किसी विचारधारा विशेष से सम्बद्ध नहीं है परन्तु मुक्त तथा निर्बन्ध आत्मा का स्वर है, जिसकी आकृति तथा रूपरेखा, भाव आदि में कोई बाहरी बाध्यता नहीं है।

ध्यान देने योग्य बाद यह है कि जन-साहित्य प्रगतिशील साहित्य या जनवादी और सर्वहारा साहित्य नहीं है, क्योंकि उनका सम्बंध राजनीतिक विचारधारा विशेष से है।

Page last modified on Saturday February 25, 2017 07:36:46 GMT-0000