जम्मू और कश्मीर
राजतरंगिणी तथा नीलमत पुराण नामक दो प्रामाणिक ग्रंथों में यह आख्यान मिलता है कि कश्मीर की घाटी कभी बहुत बड़ी झील हुआ करती थी। इस कथा के अनुसार कश्यप ऋषि ने यहां से पानी निकाल लिया और इसे मनोरम प्राकृतिक स्थल में बदल दिया। किन्तु भूगर्भशास्त्रियों का कहना है कि भूगर्भीय परिवर्तनों के कारण खदियानयार, बारामुला में पहाड़ों के धसने से झील का पानी बहकर निकल गया और इस तरह पृथ्वी पर स्वर्ग कहलाने वाली कश्मीर घाटी अस्तित्व में आई। ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक ने कश्मीर में बौद्ध धर्म का प्रसार किया। बाद में कनिष्क ने इसकी जड़ें और गहरी कीं। छठी शताब्दी के आरंभ में कश्मीर पर हूणों का अधिकार हो गया। यद्यपि सन 530 में घाटी फिर स्वतंत्र हो गई लेकिन इसके तुरंत बाद इस पर उज्जैन साम्राज्य का नियंत्रण हो गया। विक्रमादित्य राजवंश के पतन के पश्चात कश्मीर पर स्थानीय शासक राज करने लगे। वहां हिंदू और बौद्ध संस्कृतियों का मिश्रित रूप विकसित हुआ। कश्मीर के हिंदू राज्यों मं ललितादित्य (सन 797 से सन738) सबसे प्रसिद्ध राजा हुए जिनका राज्य पूर्व में बंगाल तक, दक्षिण में कोंकण तक पश्चिम में तुर्किस्तान और उत्तर-पूर्व में तिब्बत तक फैला था। ललितादित्य ने अनेक भव्य भवनों का निर्माण किया कश्मीर में इस्लाम का आगमान 13वीं और 14वीं शताब्दी में हुआ मुस्लिम शासकों का जैन-उल-अब्दीन (1420-70) सबसे प्रसिद्ध शासक हुए जो कश्मीर में उस समय सत्ता में आए जब तातारों के हमले के बाद हिंदू राजा सिंहदेव भाग गए बाद में चक शासकों ने जैन-उल-अब्दीन के पुत्र हैदरशाह की सेना को खदेड़ दिया और सन 1586 तक कश्मीर पर राज किया सन 1586 में अकबर ने कश्मीर को जीत लिया। सन 1752 में तत्कालीन कमजोर मुगल शासक के हाथ से निकलकर आफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली के हाथों में चला गया। 67 साल तक पठानों ने कश्मीर घाटी पर शासन किया।जम्मू का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। हाल में अखनूर से प्राप्त हड़प्पा कालीन अवशेषों तथा मौर्य, कुषाण और गुप्त काल की कलाकृतियों से जम्मू के प्रचीन स्वरूप पर नया प्रकाश पड़ा है। राज्य 22 पहाड़ी क्षेत्रों में बंटा हुआ था। डोगरा शासक राजा मालदेव ने कई प्रदेशों पर विजय प्राप्त कर अपने साम्राज्य को शक्तिशाली बनाया। सन 1733 से 1782 तक राजा रंजीत देव ने जम्मू पर शासन किया किंतु उत्तराधिकारियों के कमजोर होने के कारण अपने क्षेत्र को पंजाब रियासत से संलग्न कर दिया। बाद में राजकाज की बागडोर डोगरा शाही खानदान के वंशज राजा गुलाब सिंह सौंप दिया। 1947 तक जम्मू पर डोगरा शासकों का शासन रहा इसके बाद महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्टूबर, 1947 को भारतीय संघ में विलय के समझौते पर हस्ताक्षर किए।
कृषि
कृषि राज्य की अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण घटक है। राज्य की ज्यादातर आबादी के लिए खेती ही रोजगार का प्रमुख साधन है। केसर, शहद तथा बासमती जैसे दुर्लभ कृषि उत्पादों का कृषि आयात में महत्वपूर्ण हिस्सा है।
सिंचाई
सिंचाई खेती का एक अनिवार्य घटक है। विश्व में खेती के लिए बारिश के पानी के अतिरिक्त सिंचाई की जरूरत पड़ती है। मौसमी बरसात वाले क्षेत्रों में बारिश के मौसम के अलावा पानी की जरूरत सिचाई से पूरी की जाती है। सिंचाई का प्रमुख साधन नहरें हैं। सिंचाई के अन्य साधन ट्यूबवेल, तालाब आदि हैं।
बागवानी
जम्मू-कश्मीर राज्य देश तथा विदेशों में अपने बागवानी उत्पादों के लिए प्रसिद्ध है। यहां सेब, नाशपाती, प्लम, खूबानी, आडू, बादाम, चेरी, आम, अमरूद, नीबू, लीची आदि की पैदावार होती। इसके अलावा केसर की खेती भी की जाती है। राज्य में कुछ स्थानों पर जीरा भी उगाया जाता है। बागवानी राज्य के तेजी से उभरते क्षेत्रों में से एक है।
पुष्पोत्पादन
यह बागवानी का मुख्य घटक है। देशी तथा विदेशी बाजारों में फूलों की बढ़ती मांग के कारण किसानों को इससे खूब आमदनी हो रही है। इसके प्रोत्साहन के लिए पुष्पोत्पादन नर्सरियां बनाई गई हैं, जहां सुंदर तथा औषधीय महत्व के फूलों की खेती की जाती है।
सिराज बाग, श्रीनगर में ट्यूलिप गार्डन लगाना विभाग की महत्वपूर्ण उपलब्धि है। यह एशिया का सबसे बड़ा ट्यूलिप गार्डन है। इसमें मार्च के अंतिम सप्ताह से लेकर अप्रैल के अंतिम सप्ताह तक फूल खिले रहते हैं।
वन
राज्य के 20230 वर्ग किमी. क्षेत्र में वन हैं, जो वास्तविक सीमारेखा के इस पार के भौगोलिक क्षेत्र, 101387 वर्ग किमी. का 19.95 प्रतिशत है।
उद्योग
राज्य के आर्थिक विकास, आय वृद्धि तथा रोजगार उत्पादन के लिए औद्योगीकरण बहुत जरूरी है।
परिवहन
सड़कें:राज्य 400 किमी. लंबे राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर 1ए द्वारा शेष देश से जुड़ा है, जिसका रखरखाव सीमा सड़क संगठन द्वारा किया जाता है। रेल यातायात के प्रदेश में शुरूआती चरण में होने कारण सड़कें दूर-दराज के क्षेत्रों को जोड़ने का मुख्य जरिया है। जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच 1ए) के रखरखाव का खर्च्र विश्व में सबसे अधिक है।
9933 बस्तियों में से सिर्फ 2735 सड़कों से जुड़ी हैं 18809.42 कि.मी. सड़क का रख-ररखाव पीडब्लूडी द्वारा किया जाता है। इससे से 9559.64 किमी. डामर की, 4832 किमी. मेटल्ड, 1315 किमी. इकहरी, 3000 किमी. मौसम के अनुकूल तथा 102 किमी. जीप से जाने लायक है। राज्य पीडब्लूडी द्वारा 2002-03 में 14858 किमी. सड़क की मरम्मत की गई।
मार्च, 2009 के अंत तक पीडब्लूडी ने 18809 किमी सड़कों के मरम्मत का कार्य किया। पीडब्लूडी सड़कों का घनत्व 18.55 किमी. प्रति वर्गमीटर तथा 154.34 किमी. प्रति हजार व्याक्ति है 2008-09 के दौरान 100 किमी. सड़कों के लिए वाहनों की संख्या 3553 रही 2001-02 के 3.64 लाख वाहनों की तुलना में वर्ष 20008-09 में वाहनों की संख्या में 6.68 लाख का इजाफा हुआ, इस दौरान वाहनों की संख्या में 8 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई वर्ष 2008-09 के अंत तक पीडब्लूडी द्वारा अनुरक्षित सड़कों की लंबाई 18809 किमी. थी जबकि वाहनों की कुल संख्या 668427 रही। प्रति सौ वर्ग किमी. सड़क पर पंजीकृत वाहनों संख्या 659 तथा प्रति लाख जनसंख्या पर पंजीकृत वाहनों की संख्या 5342 थी।
मार्च, 2009 तक सभी एजेसियों द्वारा अनुरक्षित सड़क की कुल लंबाई 40103 किमी. राज्य का सड़क जनसेवाओं दोनों पर खराब प्रभाव पड़ रहा है। विभिन्न जिलों के ग्रामीण सड़क घनत्व में बहुत अधिक अंतर है।
रेलवे: भौगोलिक कठिनाइयों के कारण राज्य में रेल का विकास, अन्य राज्यों के समान नहीं हो पाया है। अभी तक जम्मू रेल लाइन को ऊधमपुर तक बढ़ाया गया है (90 किमी.) ऊधमपुर-काजीगुंड रेल अभी तक काम चल रहा है तथा काजीगुंड और बारामुला रेल लाइन का काम पूरा हो गया है।
उड्डयन: उड्डयन में तीन प्रमुख हवाई अड्डे हैं इसमें से श्रीनगर हवाई अड्डे को अंतर्राष्ट्रीय स्तर का बनाकर इसका नाम शेख-उल- आलम हवाई अड्डा रखा गया है। इसके चालू हो जाने से राज्य सीधे अंतर्राष्ट्रीय स्तर से जुड़ जाएगा । इससे राज्य के पर्यटन उद्योग को गति मिलेगी, आर्थिक विकास में वृद्धि होगी तथा रोजगार के अवसरों में बढ़ोतरी होगी।
पर्यटन स्थल
जम्मू-कश्मीर एक प्रमुख पर्यटन स्थल है तथा सदियों से देश-विदेश के पर्यटकों का आकर्षण स्थल रहा हैं। हरे-भरे वन, मीठे झरने, नदियां, खूबसूरत नयनाभिराम दृश्य कश्मीर घाटी में पर्यटकों को आकर्षित करते हैं तो मंदिरों की भूमि जम्मू तीर्थ यात्रियों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। माता वैष्णों देवी मंदिर को देखने बड़ी संख्या में तीर्थयात्री यहां आते हैं, वहीं लेह विदेशी सैलानियों के आकर्षण का केंद्र है।