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जुगुप्सा

जुकुप्सा वीभत्स रस का स्थायी भाव है जो अप्रिय के दर्शन, स्पर्श तथा स्मपण से उत्पन्न होने वाला मनोविकार है। यह एक प्रकार की घृणा है। इसमें चित्तवृत्ति का संकुचन होता है तथा उस अप्रिय से विकर्षण होता है। यह सामान्यतः अपूर्ण होता है तथा रसपरिपाक में ही पूर्णतः प्रस्फुटित होता है।

इसके व्यभिचारी भाव हैं - मोह, व्याधि, जड़ता, ग्लानि इत्यादि।

Page last modified on Sunday February 26, 2017 15:27:30 GMT-0000