जोगीड़ा
जोगीड़ा एक प्रकार का घोर अश्लील तथा अश्राव्य गान है जिसे उत्तर प्रदेश तथा बिहार में होली के अवसर पर गाया जाता है। जोगीड़े सामान्यतः नहीं गाये जाते। इसे बुरा माना जाता है परन्तु इसके थोड़ा ही कम अश्लील कबीर गाने को उतना बुरा नहीं माना जाता। वैसे होली के मौसम में जोगीड़ा से पहले कबीर गाया जाता है। ऐसा क्यों किया जाता है यह अभी भी यह रहस्य बना हुआ है।जोगीड़ा टोलियों में गाया जाता रहा है परन्तु अब इसे गाने की परम्परा लुप्त सी हो गयी है। कहीं-कहीं रात में जोगीड़ा का आयोजन किया जाता है और कई बार इसे गाने के लिए बनारस से हिजड़े मंगाये जाते हैं। ये विशेष जोगीड़ा गायक होते हैं। जोगीड़ा गायक स्त्रियों की तरह भेष भूषा बनाकर, अर्थात् पूरी तरह सज-धजकर जोगीड़े गाता है, मचक-मचक कर नाचता है तथा एक अन्य व्यक्ति मिट्टी के घड़े को अपनी अंगुठी से टक-टक की ध्वनि से बजाता है। बीच-बीच में 'जोगीरा सार रारा, रारा रारा, रारा रारा' या 'जोगीजी धीरे-धीरे' का घोष होता रहता है।
बनारस में होली के दिनों में बसंत पंचमी से होली तक जगह-जगह जोगीड़ा गाने वाले भी मिल जाते हैं। आम लोगों में युवकों तथा बच्चों को ललकारा जाता है, परन्तु वे जोगीड़ा गाते बच्चों या युवकों से नाराज हो जाते हैं।
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जोगौटा, ज्ञातयौवना, ज्ञानाश्रयी शाखा, झपताल, झांझी, झुंझना