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तन्मात्र

भारतीय सांख्य दर्शन में भूत-सूक्ष्म को तन्मात्र कहते हैं। ये इतने सूक्ष्म होते हैं कि अनुमान से ही इनका ज्ञान होता है। केवल योगियों का इनका प्रत्यक्ष ज्ञान हो सकता है ऐसा माना गया है। अन्य के लिए इन्हें अप्रत्यक्ष तथा अभोग्य माना गया है।

तन्मात्र पांच हैं - शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध।

इन्हीं पांच तन्मात्र से पंच महाभूतों - आकाश, वायु, तेज, जल, तथा पृथ्वी की उत्पत्ति होती है।

शब्द तन्मात्र से आकाश बना; शब्द तथा स्पर्श से वायु; शब्द, स्पर्श तथा रूप के योग से तेज; शब्द, स्पर्श, रूप तथा रस के योग से जल; तथा पांचों तन्मात्रों के योग से पृथ्वी बनी।

सांख्य दर्शन में प्रकृति से पंचमहाभूतों के अविर्भाव के दो चरण बताये गये हैं। पहले चरण को प्रत्यय सर्ग या बुद्धि सर्ग कहा गया। इसमें बुद्धि, अहंकार एवं ग्यारह इन्द्रियां प्रकट होती हैं। दूसरे चरण को तन्मात्र सर्ग या भौतिक सर्ग कहा गया जिसमें पंचतन्मात्र, पंचमहाभूत तथा उनके विकार का अविर्भाव होता है।

Page last modified on Friday March 3, 2017 06:39:26 GMT-0000