तार्किक सत्य
तार्किक सत्य वह सत्य है जिसे हम तर्क के आधार पर जान पाते है। यह रूढ़ियों का खंडन करने में सक्षम होता है तथा कटु यथार्थ को प्रस्तुत करने में सहायक होता है। यह द्वन्द्वात्मक प्रणाली का विश्लेषण करने, काल्पनिक स्वप्नों की मिथ्यावादिता से कला को मुक्ति दिलाने, तथा मूल्यों की व्यावहारिकता एवं उनकी गतिशीलता को जांचने आदि में सहायक होता है। परन्तु इसकी अनेक सीमाएं हैं। इसका जन्म दार्शनिक विवेचना प्रक्रिया में होता है, जिसे यथार्थवादी बुर्जुआ विचारों की परिणति मानते हैं। तार्किक सत्य का बोध केवल परीक्षण तथा निष्कर्ष के माध्यम से होता है।इसमें कई बार बुद्धिविलास का दोष उत्पन्न हो जाता है। मूल्यों की स्थापना तथा रसानुभूति के लिए तार्किक सत्य का सहारा निरर्थक होता है। इसमें परिप्रेक्ष्य का अभाव होता है। जीवन को समग्रता में समझने के लिए यह अपर्याप्त है। कला की दृष्टि से तार्किक सत्य तो वैज्ञानिक सत्य से भी कटु तथा अव्यावहारिक हो सकता है।
क्रिस्टोफर कार्डवेल ने इल्यूजन एंड रिऐलिटी नामक अपनी रचना में इसे क्रियाशील दृष्टि के अभाव में एक बौद्धिक पिंजरा माना है।
आधुनिक युग की सौंदर्यात्मक भावना में सौन्दर्य को केवल तर्कसन्दर्भ में नहीं बल्कि सक्रिय रूप में स्वीकार किया जाता है। केवल तर्क के आधार पर किसी निष्कर्ष पर पहुंचने में वास्तविक तुष्टि नहीं मिल सकती है, यद्यपि तर्क की संगति भी एक सत्य है। परन्तु क्रियाशीलता के अभाव में यह केवल प्राणहीन वस्तु बनकर निरर्थक सिद्ध होती है, ऐसा माना जा रहा है।
कहा जा रहा है कि यह अनुभूत सत्य के मर्म तथा यथार्थ के सौन्दर्य की क्रियाशील गतिविधि को जानने में सक्षम नहीं है क्योंकि भावजगत की रागात्मक अनुभूति को जानने के लिए केवल तर्क का आधार अपर्याप्त है।