तिरस्कार
किसी गुणान्वित वस्तु का निरादर करना तिरस्कार है। काव्यशास्त्र में यह एक अलंकार है। यह विशेषालंकार के अन्तर्गत आने वाला अर्थालंकार है। यह अवज्ञा से भिन्न अलंकार है क्योंकि अवज्ञा उल्लास के विरुद्ध है, जबकि तिरस्कार अलंकार अनुज्ञा के विरुद्ध है। किसी दूषित वस्तु में गु्ण ढूंढकर उसकी इच्छा करने को अनुज्ञा कहते हैं जबकि उसके विपरीत तिरस्कार में किसी गुण वाली वस्तु का निरादर होता है।