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तीव्रानुभूतिवादी आलोचना प्रणाली

तीव्रानुभूतिवादी आलोचना प्रणाली वह विधा है जिसमें किसी कृति की रचना के समय कृतिकार की तीव्र अनुभूतियों का आकलन होता है। इस आलोचना प्रणाली में यह मानकर चला जाता है कि कृति के सृजन के समय कृतिकार की अनुभूति जितनी तीव्र होगी, कृति उतनी ही श्रेष्ठ होगी। इसलिए कृति की श्रेष्ठता निर्धारण में कृतिकार की अनुभूतियों की तीव्रता को ही मापने का प्रयत्न किया जाता है।

इस प्रणाली के आलोचक सबसे पहले स्वयं से प्रश्न पूछते हैं कि क्या वह कृतिकार की तरह ही कृति में किसी अपूर्व झलक को देख पा रहा है? यदि देख पा रहा है तो वह उससे कितना वशीभूत है? कृतिकार ने जिस अपूर्व जगत की सृष्टि का प्रयास किया उसमें काल्पनिक वास्तविकता कितनी है? यदि है तो कहां तक?

ऐसे ही प्रश्नों के उत्तर ढूंढते हुए यह आलोचना प्रणाली आगे बढ़ती है तथा कृति की श्रेष्ठता के स्तर का निर्धारण करती है।

Page last modified on Friday March 10, 2017 05:55:05 GMT-0000