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तुल्यप्राधान्य व्यंग्य

तुल्यप्राधान्य व्यंग्य साहित्य में गुणीभूत व्यंग्य का एक भेद है। ऐसे व्यंग्य में जो बात कही गयी है उसका अर्थ अर्थात् वाच्यार्थ तथा जो व्यंग्य किया गया है उसका अर्थ अर्थात् व्यंग्यार्थ समान रूप से उत्कृष्ट होता है।

उदाहरण – मनुष्य के दिन एक से नहीं रहते, उत्थान-पतन यही श्रृष्टि का नियम है। पंत की इन पंक्तियों में पहले वाक्य का व्यंग्यार्थ तथा दूसरे वाक्य का वाच्यार्थ, दोनों की प्रधानता या उत्कृष्टता बनी हुई है।

Page last modified on Sunday March 12, 2017 04:04:02 GMT-0000