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तोमर

तोमर दो छन्दों के नाम हैं। एक मात्रिक सम छन्द का भेद है तथा दूसरा वर्णिक छन्दों में समवृत्त का एक भेद है।

मात्रिक सम छन्द के भेद के रूप का वर्णन करते हुए भानु ने कहा है कि इसमें 12 मात्राएं होती हैं, जसके अन्त में ग ल होता है। इस छन्द का प्रयोग प्रायः वीर रस में युद्ध वर्णन के लिए किया जाता है। परन्तु तुलसीदास ने अपने राम चरित मानस के लंकाकाण्ड में युद्ध के भयानक तथा वीभत्स दृश्य के वर्णन के लिए इस प्रकार किया।

धरु मारु बोलहिं घोर, रहि पूरि धुनि चहुं ओर।
मुख बाइ धावहिं खान, तब लगे कीस परान।

वर्णिक छन्दों में समवृत्त के भेद के रूप में इसमें सगण तथा दो जगणों से एक चरण बनता है।

उदाहरण – सुनि रामचन्द्र कुमार। धनु आनिये इक बार।
सुनि वेग ताहि चढ़ाउ। जस लोक लोक बढ़ाउ।

Page last modified on Monday March 13, 2017 05:25:00 GMT-0000