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त्रास

त्रास एक संचारी भाव है। यह अचानक भयभीत होने से उत्पन्न होता है। ऐसी अवस्था में जिस प्रकार का चित्तक्षोभ होता है उसे त्रास कहा जाता है। यह भय से भिन्न है। क्योंकि अनर्थ की संभावना से निरुत्साह होने को भय कहते हैं, जबकि आकस्मिक उद्वेगकारी चित्तक्षोभ को त्रास कहा जाता है। भय स्थायी भाव है लेकिन त्रास संचारी। त्रास आकस्मिक है परन्तु भय पूर्वापर के विचार से उत्पन्न होता है, अर्थात् अकस्मात से त्रास और विचार से भय होता है।

भरत मुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में त्रास के अवसरों में वज्रपात, उल्कापात, मेघगर्जन, भयानक वस्तु या पशु के दर्शन आदि को गिनाया है। इसके अनुभाव हैं - शरीर में संक्षिप्त कम्पन, रोमांच, गद्गद वाणी इत्यादि।

Page last modified on Monday March 13, 2017 05:53:03 GMT-0000