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त्रिक

त्रिक कश्मीरी शैव दर्शन को त्रिक कहा जाता है क्योंकि इसके साहित्य में तीन का विशेष महत्व है। इसे त्रिक दर्शन भी इसी आधार पर कहते हैं। त्रिक तीन शास्त्रों - आगम-शास्त्र, स्पन्द-शास्त्र, तथा प्रत्यभिज्ञा-शास्त्र, तीन अवस्थाओं – परा, अपरा तथा परात्परा, तीन पक्षों - अभेद, भेद, तथा भेदाभेद, तीन वाचाओं - पश्यन्ती, मध्यमा, तथा वैखरी, एवं इच्छा, ज्ञान ओर क्रिया-शक्तियों का बोध कराता है।

समरसता त्रिक दर्शन का सबसे बड़ा अनुशासन है। यह मानव स्वभाव के सभी पक्षों को निर्दिष्ट करता है क्योंकि इसका मानना है कि शिव चैतन्यस्वरूप होकर प्रत्येक वस्तु से तादात्म्य होकर ज्ञान कराते हैं, अपनी शक्ति के साथ अहर्निश लीलारत होकर प्रीति जगाते हैं, तथा शक्ति पर वशी होकर अप्रतिहत इच्छाशक्ति जगाते हैं। यह प्रकृति को निरपेक्ष सत्ता नहीं देता और न ही यह ईश्वर को निष्केवल ब्रह्म ही मानता है।

Page last modified on Monday March 13, 2017 06:10:47 GMT-0000