त्रिपुरा
भारतीय दर्शन परम्परा में त्रिपुरा आद्याशक्ति को कहा जाता है। वह आद्याशक्ति जो सकल परमेश्वर से सर्वप्रथम आविर्भूत होती है। इस सकल का प्रादुर्भाव निष्कल से उस समय होता है जब सृष्टि रचना के पूर्व एकाकी परब्रह्म परशिव में सृष्टि की इच्छा का संचार होता है और सिसृक्षा के रूप में सच्चिदानन्द विभव की शक्ति उद्भूत होती है।वामकेश्वर तन्त्र के अनुसार ब्रह्म की सिसृक्षा अर्थात् सृष्टि की इच्छा से उत्पन्न होने के कारण ही यह इच्छा-रूपा है, चिन्मात्र परब्रह्म से उत्पन्न होने के कारण यह चिद्रूपाभी है, ज्ञाता, ज्ञान, तथा ज्ञेय के रूप में इसने ही जगत की सृष्टि की इसलिए ज्ञाता, ज्ञान तथा ज्ञेय से त्रिपुरित विश्व की आदि विधात्री ही त्रिपुरा हुई।
शाक्तानन्द तरंगिणी में कहा गया है कि सूक्ष्म रूप से हर पिण्ड में यही त्रिपुरा कुण्डलिनी के रूप में विद्यमान रहती है। सरस्वती, लक्ष्मी, गायत्री, दुर्गा, त्रिपुरा सुन्दरी, अन्नपूर्णा आदि देवियां स्वरूपतः एक ही हैं।