Loading...
 
Skip to main content
(Cached)

दण्डी

दण्डी का सामान्य अर्थ है दण्ड (डंडा) धारण करने वाला। परन्तु भारतीय अध्यात्म और दर्शन, तथा योगशास्त्र में दण्डी संन्यासियों के एक सम्प्रदाय विशेष को कहा जाता है जो वाग्दण्ड, मनोदण्ड, तथा कायदण्ड के प्रतीक के रूप में तीन डंडों को एक साथ बांधकर उसे साथ में लिए चलता है। संन्यासियों का एक वर्ग ऐसा भी है जो इन तीनों दंडों के प्रतीक के रूप में एक डंडा दाहिने हाथ में धारण करता है। इसलिए एक डंडा धारण करने वाले को दंडी तथा तीन दंडों को धारण करने वाले को त्रिदंडी कहा जाता है।

स्मृतियों में इन तीनों दंडों का वर्णन मिलता है। वाग्दंड धारण करने का अर्थ है मौन धारण करना, मनोदण्ड का अर्थ है प्राणायाम की साधना कर वश में किये हुए मन को धारण करना, तथा कायदण्ड (इसे कर्मदण्ड भी कहा जाता है) का अर्थ है शरीर को साधना में प्रयुक्त करना। त्रिदंडियों का अर्थ यही है।

परन्तु जैसा कि परमहंसोपनिषद् में कहा गया है कि जो संन्यासी ज्ञानदण्ड नामक एक ही दंड धारण करते हैं वे दण्डी हैं। मात्र काष्ठ का दण्ड धारण करने वाला ज्ञान विवर्जित एवं सर्वभक्षी संन्यासी दंडी नहीं है। वैसा व्यक्ति तो केवल संन्यासी का भेष धारण करने वाला ठग है तथा वह रौरव नरक जैसे घोर नरकों में जाता है।

Page last modified on Saturday March 18, 2017 04:50:53 GMT-0000