महर्षि दयानन्द सरस्वती
महर्षि दयानन्द सरस्वती एक समाजसुधारक संत थे जिन्होंने आर्य समाज की परिकल्पना की तथा इस नाम से उनके जीवनकाल में ही एक संगठन की स्थापना हुई।उनका जन्म काठियावाड़ प्रान्त (वर्तमान गुजरात) के मौरवी राज्य के टंकारा नामक छोटे से ग्राम में अम्बाशंकर नाम के एक औदीच्य ब्राह्मण के धर विक्रम संवत् 1881 अर्थात् सन् 1823 में हुआ था। उनका बचपन का नाम मूलशंकर था। उन्होंने 22वें वर्ष में अपना घर छोड़ दिया था तथा बाद में संन्यास ग्रहण कर लिया। वह एक विद्वान भी थे तथा उन्हें वेद-वेदान्त सहित अनेक विषयों का ज्ञान था। संन्यास ग्रहण करने के बाद उनका नाम दयानन्द सरस्वती रखा गया था।
उनका निधन 30 अक्तूबर 1883 को अजमेर में हुआ। उनके निधन का कारण उनके शरीर में व्याप्त हो गया विष माना जाता है तथा कहा जाता है कि किसी महिला ने उनके रसोइये के माध्यम से उन्हें विष दिलवा दिया था। यह भी कहा जाता है कि उस रसोइये को उन्होंने भगा दिया था ताकि उसे दंडित न किया जा सके।
उन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना की जिनमें सत्यार्थप्रकाश भी शामिल है।
सत्य को मानना तथा मनवाना उनका अभीष्ट था। कोई नवीन कल्पना करने तथा मत-मतान्तर चलाने का उनका कोई उद्देश्य नहीं था। फिर भी आर्य समाज के गठन का प्रमुख श्रेय उन्हें ही जाता है।